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बिहार के 5525 प्वाइंट्स पर बिक रहा छपरा वाला जहर

Written By Unknown on Thursday, July 25, 2013 | 2:21 AM


पटना। बिहार में 5525 ऐसे प्वाइंट हैं जहां छपरा वाला कीटनाशक मिलता है। यानी खतरा बहुत बड़ा है। यही नहीं, राज्य में खेती में कीटनाशकों का प्रयोग बीते दस साल में 27 फीसदी बढ़ा है। छपरा के मशरक में खेती में उपयोग आनेवाली आर्गेनो फासफोरस नामक समूह का मोनो प्रोटोफास का अंश मिड डे मील में चला गया था जिससे 23 स्कूली बच्चों की मौत हो गयी थी। 
16 जुलाई को सारण जिले के धर्मसती गांव की इस घटना के बाद यह पता लगाया जा रहा है कि जानलेवा साबित हुआ कीटनाशक खाने में कैसे पहुंचा। किसी ने साजिशन उसमें मिला दिया या गलती से ऐसा हो गया। इसकी जांच कई स्तरों पर हो रही है। अब सरकार ने इसकी जांच के लिए एसआइटी बना दी है। पर असल सवाल यह है कि जिस बड़े पैमाने पर कीटनाशकों का बाजार घर-घर में घुस गया है, उसे ठीक करने के लिए सरकारें क्यों कदम नहीं उठा रही हैं?
यह हैरान करने वाला तथ्य है कि बिहार में  2004-05 में जहां कीटनाशकों की खपत 850 टन थी वह वर्ष 2010-11 में बढ़कर 1084 टन हो गया। जैविक खेती के शोर के बीच कीटनाशकों का बढ़ता प्रयोग इस बात का संकेत है कि कथनी औऱ करनी का फासला मौत की जगह बना रहा है। अगर पैसों के आधार पर हिसाब लगायें तो करोड़ों रुपये किसानों की जेब से निकल रहे हैं। बिहार में कीटनाशक की खपत के ये आंकड़े केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड के हैं।

मोनो प्रोटोफास नामक कीटनाशक बनाने वाली कंपनी केंद्रीय उर्वरक मंत्रालय के तहत है। विडंबना यह है कि दुनिया के दूसरे मुल्कों में कीटनाशकों के इस्तेमाल, उसके प्रबंधन के बारे में एजेंसी काम करती है। अपने यहां इसकी कोई व्यवस्था नहीं है। कीटनाशकों के इस्तेमाल के लिए बाजाप्ता ट्रेनिंग वगैरह के इंतजाम होते हैं और ट्रेंड व्यक्ति ही उसका इस्तेमाल कर सकता है। अपने यहां ये सब खामियां राजनैतिक-सामाजिक एजेंडा क्यों नहीं बनते?

आम इंसान के जीवन पर संकट डालने वाले ऐसे कीटनाशकों पर पाबंदी के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और पेस्टिसाइड एक्शन नेटवर्क की ओर से लगातार मांग उठायी जाती रही है। मोनो प्रोटोफास अमेरिका और इंग्लैंड सहित 23 देशों में प्रतिबंधित है। टॉक्सिक वाच एलायंस के गोपाल कृष्ण ने केंद्रीय रसायन व उर्वरक मंत्री श्रीकांत जेना से कहा है कि जिस कंपनी का कीटनाशक छपरा में 23 बच्चों की मौत का कारण बना है, उस कंपनी पर भी दायित्व और जिम्मेदारी तय की जाये। कंपनियां सिर्फ अपने उत्पाद बेचने के लिए नहीं हैं, बल्कि ऐसे खतरनाक उत्पादों के इस्तेमाल, उसके रख-रखाव व इस्तेमाल के बाद उसकी पुनर्वापसी का प्रबंधन इन कंपनियों को करना चाहिए। 


http://www.bhaskar.com/article/BIH-PAT-pesticides-sell-openly-in-bihar-responsible-for-death-of-school-chidren-4328350-NOR.html?OTS2=
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