
कचरा से बिजली बनाने के ज़हरीले कारखाने को भाजपा और कांग्रेस का समर्थन जन विरोधी, स्वास्थय, मजदूर और पर्यावरण विरोधी
दिल्ली में कचरे को जला कर बिजली बनाने का खतरनाक सच
नई दिल्ली- कचरा से बिजली बनाने वाली जानलेवा व प्रदूषणकारी कारखाने से ऐसे रसायन का उत्पादन होता है जिसे अमेरिका ने विअतनाम के खिलाफ इस्तेमाल रासायनिक हथियार के रूप में किया था. दिल्ली नगर निगम के चुनाव के दौरान जारी घोषणा पत्र में भारतीय जनता पार्टी ने कचरा से बिजली बनाने का वायदा किया है जो स्वास्थय, मजदूर और पर्यावरण विरोधी है जिसे भारतीय कांग्रेस पार्टी का समर्थन प्राप्त है. कचरा जलाने की तकनीकि की बदौलत यह बिजली का कूड़ा घर डाईआक्सीन का उत्सर्जन करेगी. डाईआक्सीन कैंसर के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक घोषित गंधक है. खतरनाक रसायनों को यह तकनीकि ने ठोस रूप प्रदान कर कई-कई रूपों में वायु प्रदुषण का हिस्सा बन जाता है. अब यह जहर केवल धरती या पानी में ही नहीं बल्कि हवा में भी तैरने लगता है. शहर के कूड़े में प्लास्टिक के अलावा पारा जैसे गंधक भी बहुतायत में निकलते हैं. वैज्ञानिक और व्यावसायिक बुद्धि को किनारे रख दें तो भी क्या हमें यह समझने में दिक्कत है कि प्लास्टिक और पारा के जलने से जो धुंआ निकलता है वह हमारे लिए लाभदायक है या हानिकारक?1997 में पर्यावरण मंत्रालय के अपने श्वेत पत्र में यह बात स्वीकार की गयी थी कि जिस तरीके से शहरी कूड़े को ट्रीट किया जा रहा था वह तकनीकि सही नहीं थी. अब वह सही कैसे हो गया.
भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली विधान सभा के विपक्ष के नेता विजय कुमार मल्होत्रा ने लेफ्टिनेंट गवर्नर को एक पत्र में इस कारखाने को प्रदूषणकारी बताया था अब उन्ही की पार्टी इसी कारखाने को लाने का वायदा कर रही है.
दिल्ली के ओखला में २०५० मेट्रिक टन कूड़े से बिजली का कारखाना के अलावा नरेला-बवाना में ४००० मेट्रिक टन का और गाजीपुर में १३०० मेट्रिक टन के कारखाने का निर्माण जारी है. सरकार दिल्ली में ३ कचरा से बिजली बनाने के परियोजना को लागु कर रही है जिससे पर्यावरण को भारी मात्रा में नुकसान होता है.
ऐसे बिजलीघर न तो कूड़ा निपटाने के लिए बनते हैं और न ही बिजली पैदा करने के लिए. कारण कुछ और हैं. इन कारणों में एक कारण यह भी है कि प्रति मेगावाट की दर से सरकार दो स्तरों पर अनुदान देती है. यह एक करोड़ से डेढ़ करोड़ तक होता है. जिस काम को सरकार के अधिकारी ज्यादा रूचि लेकर प्रमोट करते हैं उसके कारण सबको समझ में आ जाते हैं. इस तकनीकि के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. लेकिन जनता को इससे क्या मिलेगा? लोगों को बिजली तो मिलने से रही लेकिन जहां भी ऐसे प्लांट लगेंगे उनके आस पास के लोगों को कैंसर सौगात में मिलेगा.
आज दिली के लगभग 80% एरिया के काम को प्राइवेट कम्पनी के हाथों बेच दिया गया है लेकिन उसके बावजूद भी समस्या का हल नहीं हो पा रहा है दिल्ली में कचरे क़ि छंटाई के काम में असंगठित क्षेत्र के लगभग 3.5 लाख मजदूर शामिल है. कचरे का लगभग 20 से 25 प्रतिशत क़ि छंटाई हो जाती है. इनके द्वारा 30% कचरे क़ि छंटाई हो जाएगी जो कच्चे माल के रूप में दुबारा इस्तेमाल होगा और साथ ही 50% वैसा कचरा है जिसको जैविक कूड़ा कहते है उससे खाद बनाया जा सकता है. 80% भाग को समुदाय स्तर पर ही निपटारा हो सकता है.
सभी विकसित देशों ने ऐसी परियोजना को बंद कर चुकि है इसके मूल कारण रहे है क़ि इससे जहरीली गैस निकलती है जो जीवन व पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक है और कचरे में वैसी जलने क़ि क्षमता नहीं है जिससे बिजली का उत्पादन किया जा सकता है भारत में पहली बार दिल्ली के तिमारपुर में कचरा से बिजली बनाने क़ि परियोजना 1990 में लगाया गया जो असफल रहा. ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों को बहिष्कार करना ही एक मात्र रास्ता दिख रहा है.
http://hastakshep.com/?p=17036
कचरे से बिजली बनाने का विरोध
http://epaper.jansatta.com/07042012/4.html
कचरे से बिजली के खिलाफ लोगो में नाराजगी
http://epaper.jansatta.com/01042012/4.html
कचरे से बनी बिजली दिल्ली के लिए घातक
प्रतिभा शुक्ल
राजधानी दिल्ली को मौत के मुहाने पर धकेला जा रहा है। यहां कचरे से बिजली बनाने के संयंत्रों को स्थापित कर उन्हें चलाने की तैयारी जोरशोर से चल रही है। जबकि कचरा जलाने से जहरीले रसायन डाईआक्सिन के हवा में घुलने का खतरा है जो राजधानीवासियों को घातक बीमारियों की चपेट में ला देंगे। तमाम विरोधों के बावजूद कार्य प्रगति पर है। रेजीडेंट्स वेलफेयर एजंसियों ने इस मामले को अदालत में भी उठाया है।
राजधानी में कचरे से बिजली बनाने के तीन संयंत्र (म्युनिसिपल वेस्ट टू एनर्जी इंसीनरेटर प्लांट) खड़े करने की तैयारी है। इसमें एक संयंत्र ओखला के सुखदेव विहार आवासीय इलाके में बनकर तैयार भी हो चुका है। इस संयंत्र से 2050 मीट्रिक टन कचरे से 20.9 मेगावाट बिजली बनाने की योजना है। इलाके के बाशिंदों, समाज सेवकों व पर्यावरणविदों के तमाम विरोध के बावजूद संयंत्र का काम जारी है। इसके खिलाफ स्थानीय लोगों ने कोर्ट में मामला भी उठाया लेकिन विचाराधीन होने के बावजूद जिंदल इकोपालिस की ओर से बनाए इस संयंत्र में काम जारी है।
इतना ही नहीं इसका विरोध 2009 से चल रहा था। तब से पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से इसमें दखल देने की मांग की गई उन्होंने संज्ञान लेते हुए इस मामले को उठाया। इस बारे में जनसुनवाई का जो प्रावधान किया गया वह भी महज कागजी खानापूरी ही की गई। सुखदेव विहार ओखला में संयंत्र है जबकि इसकी जनसुनवाई साकेत में की गई। इस जनसुनवाई की हकीकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें उपस्थिति के रजिस्टर में केवल दो लोगों के दस्तखत हैं एक दिल्ली सरकार के अधिकारी व एक इंजीनियर के इस बारे में सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनी पर्यावरणीय प्रदूषण नियंत्रण समिति (ईपीसीए) को भी लिखा गया है। टाक्सिक वाच अलायंस ने इस मामले में दखल देने की ईपीसीए से अपील की है। भूरेलाल की अगुआई वाली इस समिति ने संज्ञान लेते हुए इस पर विस्तृत जानकारी मांगी है। इस संयंत्र के पास ही स्थित बायोमेडिकल वेस्ट इंसीनरेटर को भी कोर्ट की समिति ने सील करने को कह दिया है। यह भी इंसीनरेटर ठीक इसके वास व रिहाइशी इलाके में है। लिहाजा स्थानीय लोगों ने इसे भी बंद कराने की मुहिम छेड़ी है। इसी कंपनी की ओर से तैयार तिमारपुर संयंत्र भी है। जो सात दिन चलकर फिलहाल बंद है।
इन तमाम विरोधों के बावजूद एक कचरे से बिजली बनाने का संयंत्र निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के सहयोग से गाजीपुर में और एक नरेला बवाना के सन्नौट गांव में बनाया जा रहा है। गाजीपुर के संयंत्र में 1300 मीट्रिक टन कचरे से 10 मेगावाट व नरेला में दो चरणों में 400 मीट्रिक टन कचरे से 36 मेगावाट बिजली बनाने की योजना है। इन दोनों जगहों में से गाजीपुर में जीएमआर एनर्जी और नरेला में रामकी एन्वायरमेंट इंजीनियर प्राइवेट लिमिटेड काम कर रही है।
एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली के रोजाना 8500 मीट्रिक टन कचरा रोज निकलता है। इसमें से 7350 मीट्रिक टन कचरे से बिजली बनाने की योजना है। इसमें औसतन 55 फीसद हिस्सा जैविक कचरे का व 28 से 35 फीसद कचरा बालू सीमेंट जैसी सामग्री का होता है। इसमें बाकी कचरे में पालीथीन व अन्य क्लोरीनेटेड सामग्रियों, कांच व प्लास्टिक का होता है। इसे जलाने से जहरीली गैस डाईआक्सिन पैदा होता है। जो बेहद खतरनाक होता है।
टाक्सिक वाच अलायंस के अगुआ गोपाल कृष्ण के मुताबिक डाईआक्सिन से कोई ऐसा कैंसर नहीं जो नहीं होता। यह इतना जहरीला रसायन है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में वियतनाम पर हमले के दौरान इस गैस का रासायनिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। इसके कुप्रभाव आज तक खत्म नहीं हो पाए हैं। यह ही नहीं मैडमियम लेड, मर्करी व अन्य जहरीले रसायन निकलेंगे जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। चिंता की बात यह है कि यह सभी संयंत्र रिहाइशी इलाकों में या उसके ठीक नजदीक में है। चिंताजनक बात यह भी है कि डाईआक्सिन जैसी जहरीले रसायन का पता लगाने की कोई प्रयोगशाला ही नहीं है। जबकि क्लोरीनेटेड पदार्थ जलाने से यह रसायन निकलता ही है।
दिल्ली के कचरे से बिजली बनाने की योजना सरकार से मिलने वाली सब्सिडी हड़पने के लिहाज से भी बनी है क्योंकि गैरपारंपरिक ऊर्जा मंत्रालय ने गैरपारंपरिक तरीके से बिजली बनाने पर प्रति मेगावाट बिजली पर दो करोड़ रुपए की सब्सिडी देने का एलान किया है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि आंध्र प्रदेश के जिस संयंत्र के उदाहरण देकर दिल्ली में प्लांट लगाए जा रहे हैं वह संयंत्र भी सालों से बेकार पड़ा है।
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/16-highlight/7999-2012-01-03-05-29-59
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